जब  बासी  फीकी  धुप  समेटें , दिन  जल्दी  ढल  जाता  है , जब  सूरज  का  लश्कर , छत  से  गलियों  में  देर  से  जाता  है ,

जब  बेमन  से  खाना  खाने  पर , माँ   गुस्सा  हो  जाती  है , जब  लाख  मन  करने  पर  भी , पारो  पढने  आ  जाती  है 

दिल के तमाम ज़ख़्म तिरी हाँ से भर गए जितने कठिन थे रास्ते वो सब गुज़र गए

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  युद्ध में गुणगान उसका होता है जो स्वंय के दम पर युद्ध लड़ता है, इसमें फर्क नहीं पड़ता की वह हारता है या जीतता

 ख़ुशियों के बेदर्द लुटेरो ग़म बोले तो क्या होगा ख़ामोशी से डरने वालो 'हम' बोले तो क्या होगा

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एक दो दिन मे वो इकरार कहाँ आएगा, हर सुबह एक ही अखबार कहाँ आएगा , आज जो बांधा है इन में तो बहल जायेंगे, रोज इन बाहों का त्योहार कहाँ आएगा

 नशा है मुझे इस तिरंगे की आन में बसा है मेरा दिल इस धरती की जान में शक हो कोई मन में तो देख लेना कल भी थे कल भी रहेंगे इसी हिंदुस्तान में

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