हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना
- दाग़ देहलवी

ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं
- दाग़ देहलवी

स्टेज पर पड़ा था जो पर्दा वो उठ चुका
जो अक़्ल पर पड़ा है वो पर्दा उठाइए
दिलावर फ़िगार

बस अब दुनिया से पर्दा चाहती हूँमें सब से दूर रहना चाहती हूँ दीपाली अग्रवाल

देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया करहम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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तू ख़ुदा है न मेरा इश्क फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसां हैँ तो क्यूं इतने हिजाबों में मिलें
- अहमद फ़राज़